नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्रम्

॥ श्री गणेशाय नमः॥

ग्रहाणामादिरात्यो लोकरक्षणकारक:।
विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे रवि: ।।१।

रोहिणीश: सुधा‍मूर्ति: सुधागात्र: सुधाशन:।
विषमस्थानसम्भूतां पीड़ां हरतु मे विधु: ।।२।

भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा।
वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीड़ां हरतु में कुज: ।।३।।

उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:।
सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीड़ां हरतु मे बुध: ।।४।।

देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:।
अनेकशिष्यसम्पूर्ण:पीड़ां हरतु मे गुरु: ।।५।।

दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामति:।
प्रभु: ताराग्रहाणां च पीड़ां हरतु मे भृगु: ।।६।।

सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा विशालाक्ष: शिवप्रिय:।
मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु मे शनि: ।।७।।

अनेकरूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक्।
उत्पातरूपो जगतां पीडां पीड़ां मे तम: ।।८।।

महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:।
अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीड़ां हरतु मे शिखी: ।।९।।

।। इति नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्रम् ।।